समय गणना खण्ड - 2 - Jurney-Dreamland

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गुरुवार, 15 दिसंबर 2022

समय गणना खण्ड - 2

 समय के शुरुआत का सूक्ष्मातिसूक्ष्म गणकांश

समय गणना खण्ड - 2

    

समय गणना खण्ड - २

          समय गणना खण्ड 1 में सूक्ष्म से सूक्ष्म अंशमान के विषय में बताया गया है जो प्रायः सभी के लिए युगों-युगों से चलता आ रहा है। जिसमें त्रसरेणु पश्चात् त्रुटि की भी चर्चा हुई है। उस त्रुटि का अंशमान उसमें दिया गया कि है 3 त्रसरेणु को पार करने में सूर्य को जो समय लगता है वही समय त्रुटि का कारक है।

 अब प्रश्न उठता है कि त्रसरेणु क्या होता है?

      झरोखे से आई हुई सूर्य की किरणों में से बहुत ही बारीक कण उड़ते हुए से दीखते हैं, वही कण त्रसरेणु होते हैं। उस एक त्रसरेणु को पार करने में सूर्य को जो समय लगता है उसी समय को गणना क्रम में त्रसरेणु का नाम दिया गया है।

        गणना खण्ड के इस दूसरे भाग में देवताओं एवं मानव के समय का अवधिकाल दिया जा रहा है। मानवों के समय से देवताओं के समय का परिमाण ३६० गुणा अधिक होता है। यथा -

        मनुष्यों के १२ मास (३० दिवस = १ मास; १२ मास ×३० दिवस = ३६० दिवस) अथवा १ वर्ष देवताओं का १अहोरात्र अर्थात् एक दिनरात होता है। ६ मास का एक उत्तरायन होता है तथा ६ मास का ही एक दक्षिणायन होता है। उत्तरायन देवताओं का दिवस तथा दक्षिणायन रात्रि होती है। मानवों के ३० वर्ष देवताओं के ३० दिवस अर्थात् एक मास होता है। इसी प्रकार मानवों के ३६० वर्ष देवताओं का ३६० दिवस अर्थात् एक वर्ष होता है, जिसे मानवों की भाषा में एक दिव्य वर्ष कहा जाता है।

    ये तो प्रायः सभी को ज्ञात होगा कि युग चार होते हैं। सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलयुग। इन चारों युगों का सम्पूर्ण अवधिकाल एक चतुर्युग होता है। इसे देवताओं का एक युग मानवों का एक महायुग अथवा एक दिव्य युग भी कहा जाता है।

        मानवों तथा देवताओं के समय का परिमाण तो सूर्य की गति से होता है, परन्तु ब्रह्माजी के दिनरात का परिमाण देवताओं के युग- महायुग से होता है।

         ये जानकारी इसी प्रसंग के क्रम में अगले खण्ड में दिया गया है।

         खण्ड ३ में ब्रह्माजी के दिवस-रात्रि की अवधि के साथ-साथ हर एक युग का अवधिकाल, मन्वन्तरों की संख्या, प्रत्येक मन्वन्तर का शासनकाल (वर्षों में) इत्यादि सहित और भी महत्त्वपूर्ण एवं गूढ़ जानकारियां दी गई है।

          ज्ञान के विचार से इस प्रसंग के हर एक खण्डों का अध्ययन करना अत्यंत ही आवश्यक है।

                                           (शेष अगले खण्ड "3" में...)

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  हरि ॐ तत्-सत् ।। जय श्रीकृष्ण ।।


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