समय गणना खण्ड - 3 - Jurney-Dreamland

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शनिवार, 17 दिसंबर 2022

समय गणना खण्ड - 3

 समय के शुरुआत का सूक्ष्मातिसूक्ष्म गणकांश

समय गणना खण्ड - 3

समय गणना खण्ड -3


       समय गणना प्रसंग के पिछले खण्ड 2 में मानव व देवताओं का समयान्तर एवं उनके मास-वर्ष के अवधिकाल के विषय में बताया गया है। 

          गणना खण्ड के इस तीसरे भाग में ब्रह्माजी के दिवस-रात्रि की अवधिकाल के साथ-साथ उनके मास, वर्ष व पूर्णायु का अवधिकाल भी दिया जा रहा है।

         मानवों तथा देवताओं के समय का परिमाण तो सूर्य की गति से होता है, परन्तु ब्रह्माजी के दिनरात का परिमाण देवताओं के युग-महायुग से होता है। यथा -

       जैसा कि पिछले खण्ड में बताया जा चुका है कि सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग इन चारों युगों का सम्पूर्ण अवधि-काल देवताओं का एक युग तथा मानवों का एक चतुर्युग अथवा एक महायुग अथवा एक दिव्ययुग होता है।

        इस एक महायुग की एक सहस्र (१०००) बार पुनरावृत्ति होने पर ब्रह्माजी का एक दिवस होता है तथा इतनी ही बार पुनः पुनरावृत्ति होने पर एक रात्रि होती है।

         तथा इन दोनों के समन्वय से अर्थात् द्वि सहस्र (२०००) महायुगों का एक अहोरात्र अर्थात् एक दिनरात होता है। ब्रह्माजी के इसी एक अहोरात्र के दिवस को एक कल्प अथवा सर्ग कहा जाता है तथा रात्रि को प्रलय कहा जाता है। (ब्रह्माजी के दिवसकाल में उनके  जागृत अवस्था काल में सृष्टि रचना का कार्य होता है तथा रात्रि को उनके शयनकाल में प्रलय होता है।) इसी प्रकार षष्ठि सहस्र (६०,०००) अर्थात् साठ हजार महायुगों का एक मास होता है, सप्त लक्ष विंशति सहस्र महायुगों (७,२०,०००) अथात् ७ लाख २० हजार महायुगों का १ वर्ष होता है। इसी क्रम से ब्रह्माजी की आयु १०० वर्ष की होती है, जो सप्त कोटि विंशति लक्ष (७,२०,००,०००) महायुगों की होती है अर्थात् एक चतुर्युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग) की ७ करोड़ बीस लाख (७,२०,००,०००) बार पुनरावृत्ति होने पर ब्रह्माजी के १०० वर्ष की पूर्णायु हो जाती है। ब्रह्माजी अपनी १०० वर्ष की आयु पूर्ण कर महाप्रलय के साथ ही अपने लोकसहित शान्त हो जाते हैं तत्पश्चात् दूसरे ब्रह्मा की उत्पत्ति होती है।

      भगवान श्रीकृष्ण ने इसी बात को अपने उपदेश के माध्यम से श्रीमद्भागवत गीता के ८वें अध्याय में श्लोक संख्या १७, १८ एवं १९ में अर्जुन को इस प्रकार समझाया है -

          "सहस्रयुगपर्यंतमहर्यद्ब्रह्मणो   विदुः।

          रात्रिं युगसहस्रान्तां तेsहोरात्र विदोजनाः।।१७।

          अव्यक्ताद् व्यक्तय: सर्वा प्रभवत्यहरागमे।   

          रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसञ्ज्ञके।।१८ 

          भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते। 

          रात्र्यागमेsवशः  पार्थ  प्रभवत्यहरागमे।।१९।"

      अर्थात् ब्रह्मा का जो एक दिन है उसको हजार चौकड़ी युगतक अवधिवाला और रात्रि को भी हजार चौकड़ी युगतक अवधिवाली जो पुरुष तत्त्वसे जानते हैं, अर्थात् काल करके अवधिवाला होने से ब्रह्मलोकको भी अनित्य जानते हैं, वे योगीजन कालके तत्त्व को जाननेवाले हैं।।१७।।  इसलिए वे यह भी जानते हैं कि सम्पूर्ण दृष्यमात्र भूतगण ब्रह्मा के दिनके प्रवेशकाल में अव्यक्तसे अर्थात् ब्रह्माके सूक्ष्म शरीरसे उत्पन्न होते हैं और ब्रह्माकी रात्रिके प्रवेशकाल में उस अव्यक्त नामक ब्रह्माके सूक्ष्म शरीरमें ही लय होते हैं।।१८।।  वह ही यह भूतसमुदाय उत्पन्न हो-होकर, प्रकृति के वश में हुआ रात्रिके प्रवेशकाल में लय होता है और दिनके प्रवेशकाल में फिर उत्पन्न होता है, हे अर्जुन! इस प्रकार ब्रह्माके एक सौ वर्ष पूर्ण होनेसे अपने लोकसाहित ब्रह्मा भी शान्त हो जाता है।।१९।।"

      यहाँ चौकड़ी का तात्पर्य चारों युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग) का सम्पूर्ण अवधिकाल अर्थात् एक चतुर्युग है

       समय गणना प्रसंग के इस खण्ड में हम और भी गूढ़ जानकारियां देना चाहते थे, परन्तु प्रसंग बहुत लम्बा हो गया है इसलिए शेष इसी प्रसंग के अगले खण्ड में दिया गया है।

        खण्ड ४ में हर एक युग का अवधिकाल, मन्वन्तरों की संख्या, प्रत्येक मन्वन्तर का शासनकाल (वर्षों में) इत्यादि सहित और भी बहुत-सी गूढ़ जानकारियां दी गईं हैं।

                            (शेष अगले खण्ड में...)

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  हरि ॐ तत्-सत् ।। जय श्रीकृष्ण ।।

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