आजकल सोशल मीडिया पर जब देखो, जहाँ देखो सब जगह बहुत से लोग धर्म के नाम पर गंदी एवं खोखली राजनीति कर धर्म के नाम को बदनाम कर रहे हैं और धर्मशास्त्रों की परिभाषा को ही बदलने पर तुले हुए हैं । जाति और धर्म के नाम पर लोगों को आपस लड़वाकर सभी अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं। ऐसे लोगों को न तो धर्म के बारे में पूर्णतः ज्ञान है और न ही ऐसे लोगों की दृष्टि में धर्म कोई मायने रखता है। जबकि श्रीमद्भागवत गीता एक सबसे बड़ा स्पष्ट उदाहरण है कि धर्मशास्त्र में जाति-पांती नामक भेदभाव का रत्तीभर भी स्थान नहीं है और न ही कोई धर्मशास्त्र में भिन्न-भिन्न जाति-सम्प्रदाय के मानवों को जाति और धर्म की आड़ में आपस में लड़ने-लड़वाने का कोई रत्तीभर भी संकेत देता है। उसमें जो कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध हुआ वो अधर्मियों के विरुद्ध था न कि जाति अथवा किसी सम्प्रदायों के विरुद्ध।
जो अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए लोगों को आपस में लड़वाते हैं उनका न तो कोई धर्म होता है और न ही कोई जाति। धार्मिक ग्रंथों में ऐसे लोगों को ही अधर्मी कहा गया है। आज मानव ईश्वर भक्ति से विमुख होकर नेताभक्ति करने लगा है और इसी विमुखता के कारण प्रत्येक राज्यों में गृहक्लेश, भूखमरी, महामारी जैसी परिस्थितियां उत्पन्न होती है। क्योंकि लोगों ने ईश्वर-भक्ति को छोड़कर मानवधर्म को भुला दिया है। ईश्वर को मानव के द्वारा जो सच्ची श्रद्धा भक्ति मिलनी चाहिए, जिससे ईश्वर को बलाबल मिले वो ईश्वर को मिल नहीं पाती है, तो ईश्वर का बलाबल कमजोर पड़ने लगता है । इसलिए ईश्वर किसी की भी सहायता करने में असमर्थ हो जाता है और इसीलिए गृहक्लेश, भूखमरी, महामारियों का बल बढ़ जाता है और वो लोगों में मृत्यु का ताण्डव मचाती है और मूर्ख लोग इसका दोष किसी मानव अथवा किसी देश पर थोप देते हैं। आज धर्म के नाम पर पाखंड अधिक हो गया है साधु के वेष में लोग राजनीति करने लग गए हैं। साधु-सन्यासी का वास्तविक कर्तव्य ईश्वर-भक्ति और धार्मिक अनुष्ठानों जैसे सात्विक कर्म द्वारा राज्य में पूर्णतया शान्ति स्थापित करना है।
पूर्वकाल में गाधिसुत जो राजा था उसने ईश्वर भक्ति की शक्ति को पहचाना, तो तुरंत अपना राजपाट छोड़ दिया और तपस्वी बन गए, ईश्वर भक्ति में लग गए। जो ऋषि विश्वामित्र के नाम से विख्यात हुए थे। ऐसे लोग थे सनातन धर्म में जो ईश्वर भक्ति के लिए अपना राजपाट त्यागकर योगी-महात्मा बन गए थे। मगर आजकल तो उसका उल्टा हो रहा है। उसी सनातन धर्म-भूमि पर जन्म लेने वाले व सनातन धर्म की बातें करने वाले लोग जो योगी- महात्मा बन चुके थे, अब वो लोग भी साधु से स्वादु बन रहे हैं, जो ईश्वर-भक्ति छोड़कर मोहमाया की राजनीति करने लगे हैं। सबको पैसा जो कमाना है। आज के समय में राजनीति से बढ़िया व्यापार और हो ही क्या सकता है? मगर ईश्वर की सत्ता को कोई भी मात नहीं दे सकता है, किसी भी परिस्थिति में नहीं। चाहे कोई राजनीति का कितना ही बड़ा धुरंधर खिलाड़ी बनने की कोशिश क्यों न करें।
राज्यों में गृहक्लेश, भूखमरी, महामारी जैसी परिस्थितियां उत्पन्न होना, ये क्या है? भले ही कोई राजनीति में अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए किसी मानव अथवा किसी देश को इसका दोषी ठहराकर स्वयं को प्रजा समक्ष नायक सिद्ध करने का प्रयास करे, मगर सच्चाई ये है कि ईश्वर-भक्ति से विमुख होकर मानवधर्म को त्यागकर धर्मशास्त्रों का उल्लंघन करने वालों को दण्ड देने के लिए ही ईश्वर गृहक्लेश, भूखमरी, महामारी जैसी स्थितियां उत्पन्न करता है। इसलिए सावधान रहो नेताभक्ति की बजाय ईश्वर-भक्ति से अपना जीवन सार्थक बनाइये। ईश्वर-भक्ति करने वालों को कोई भी अपनी सत्ता अथवा पॉवर के बल पर झुका नहीं सकता कोई भी भयभीत नहीं कर सकता है।
बोलिये सच्चिदानंदघन भगवान वासुदेव श्रीकृष्णचन्द्र भगवान की जय।
हरि ॐ तत्-सत् ।
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