कट्टरपंथियों के दृष्टिकोण व काफ़िर - Jurney-Dreamland

Breaking

ज्ञान-दर्पन by Diwakar Pandit - blogger, जीवन और ज्योतिष, -शास्त्र, ज्योतिष-शास्त्र सम्बम्धी जानकारी, हितोपदेश, जीवनोपयोगी लेख, शॉपिंग सम्बन्धी सुझाव - सलाह, एंटरटेनमेंट व एन्टरटेनमेंट से जुड़े आर्टिस्टों से कॉन्टेक्ट का जरिया उपलब्ध करवाना आदि-आदि All Contents तथा और भी बहुत सी उपयोगी जनकारिया इसमे शामिल कि गई है जो सभी के लिये लाभदायक सिद्ध होंगी

सोमवार, 2 मई 2022

कट्टरपंथियों के दृष्टिकोण व काफ़िर

🕷️ कट्टरपंथियों के दृष्टिकोण व काफ़िर


          समय-समय पर मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा तथा चर्च में अपने-अपने सम्प्रदायों के साधू-फ़कीर धार्मिक प्रवचन करते रहते हैं।

        प्रवचन का तात्पर्य है कि प्रेरक-प्रसंग द्वारा अपने-अपने सम्प्रदायों को सुशिक्षा देना, मानवता अथवा इंसानियत का पाठ पढ़ाना, नैतिकता की शिक्षा देना इत्यादि। इस तात्पर्य का ये नियम भी है तथा अपने स्वयं की समझदारी भी है कि ये सब शांत मन, शालीनतापूर्वक मीठी तथा मधुर वाणी से ही सम्भव है।

         मगर अक्सर मुस्लिम भाई अर्धरात्रि के समकक्ष समय क्रोधपूर्वक चिल्ला-चिल्लाकर प्रवचन देते रहते हैं। जबकि ये गलत है, क्योंकि क्रोध या गुस्सा भय अथवा डर की निशानी है। आपका चिल्लाना या गुस्सा करना ये दर्शाता है कि आप डरे हुए हो, आप अपने अन्दर से भयभीत हो। यदि आप खुदा के सच्चे बंदे हो, तो खुदा के घर में, खुदा के बन्दों को प्रवचन देते समय भय अथवा डर कैसा? 

       ख़ैर! मुख्य मुद्दे पर आते हैं। उस वक्त ये लोग चिल्लाते-चिल्लाते एक शब्द का उपयोग करते हैं "काफ़िर"। "मोहम्मद ने चुन-चुनकर काफ़िरों को मार डाला था... ख़ुदा का फरमान है कि कोई भी काफ़िर जिंदा न रहने पाएं... काफ़िर जहाँ भी नज़र आएं उसको मार डालो,... काफ़िरों को नेस्तनाबूद कर डालो। आदि-आदि...

      एक तो चिल्ला-चिल्लाकर बोलने से सामने वाले को अथवा सुनने वाले को पूरी बात वैसे भी पल्ले नहीं पड़ती है कि आख़िर ये कहना क्या चाहता है, दूसरा बात कहने का इनका आक्रामक तरीका सुनने वालों में गलतफहमी पैदा कर देता है। इसी कारण अन्य सम्प्रदाय वाले समझ लेते हैं कि ये लोग "काफ़िर" हम लोगों को ही मानते हैं। इसका कारण भी यही है कि वो मानने लोग भी अन्दर से भयभीत हैं, डरे हुए हैं, सहमे हुए हैं। गलती उन श्रोता तथा वक्ता दोनों की ही है।

         वे लोग इस सत्य को नहीं जानते हैं :-  ये एक शाश्वत सत्य है कि अकारण अर्थात बिना कारण कोई भी किसी का शत्रु नहीं होता है, अपने अन्दर का भय ही अपना शत्रु होता है, अन्य कोई भी नहीं। इस भय का का मूल कारण है :-  "मूर्खता, अज्ञानता, नासमझी।"

      तथा इस "मूर्खता, अज्ञानता, नासमझी।" का मूल कारण है:- वास्तविक धर्मशास्त्रों का ज्ञान न होना, ईश्वरभक्ति को छोड़कर किसी आदमी को भगवान मान लेना तथा उसके ही गुणगान करते रहना।

       जैसे आजकल हर तीसरा आदमी नेताओं की भक्ति अर्थात नेताओं की चापलूसी करना ही अपना धर्म मान बैठे हैं। 

         वो जो भी करे, जो भी कहे, जैसे भी करे उसे उस नेता की अंधभक्ति में डूबकर सच मान लेना ही सबसे बड़ी गलती भी है और सबसे बड़ी मूर्खता भी। मगर उन मूर्खों को कदाचित मालूम नहीं है कि नेता गिरगिट की तरह होते हैं, उनको रंग बदलते देर नहीं लगती है।

           ऐसे जहरीले जीव-जंतुओं की प्रकृति वाले लोगों के मन में कोई प्रीत नहीं होती है। वह सबसे पहले अपने इर्दगिर्द मंडराने वाले को ही काटते हैं। भले ही वे कोई उनका अंधभक्त ही क्यों न हो, उसे ऐसे किसी भी मानवीय रिश्ते-नातों से कोई लेना-देना नहीं होता है और उनसे ऐसी कोई आशा अथवा उम्मीद रखना भी सबसे बड़ी मूर्खता है।

          ये सत्ताधारी नेता तो जल की लहरों की तरह है जो एक गई तो दूसरी आ गई। तो फिर इस अस्थायी सत्ता वाले नेताओं की भक्ति अर्थात चापलूसी क्यों? ऐसे स्वार्थी नेता सत्ता पाने के लिए अपने बीवी-बच्चों तक को  बीच मझधार में छोड़कर चले जाते हैं। अपने भाई-बन्धु, सगे-साथियों, संबंधियों तक जान भी ले लेते हैं। ऐसा अपने देश में पिछले कुछ वर्षों पहले हो भी चुका है। एक षड्यंत्रकारी नेता ने पी. एम. की कुर्सी पाने के लिए कई हिन्दू तथा मुस्लिम भाई-बंधुओं को मौत की घाट उतार डाला। देश की सबसे बड़ी भारतीय संपत्ति का भी आग लगाकर काफी नुकसान कर डाला। जिसमें बहुत सारे मानव भी थे उनको भी उस आग में झोंककर मार डाला गया था। ऐसे घटिया स्तर के नेताओं के मूर्ख लोग तलवे चाटते हैं।

        सत्ता पाने के नीच से नीच, हर घटिया से घटिया हरकत करने से भी नहीं चूकते। और फिर वो सत्ता रहती कितने दिन है?

         जब किसी सत्ताधारी की ही भक्ति करनी तो उस ऊपर वाले सत्ताधारी की भक्ति कीजिए जिसकी अनादिकाल से स्थायी रूप से सत्ता है, जिसकी सत्ता सबसे ऊपर है उस सत्ताधारी मालिक की, उस सत्ताधारी परमात्मा की भक्ति कीजिए।

        मेरा भरपूर प्रयास है कि सम्पूर्ण मानव जाति में ईश्वरीय भक्ति अर्थात सबके अंदर ईश्वर के प्रति श्रद्धा जागृत करना। चाहे वो किसी भी समुदाय अथवा सम्प्रदाय का हो, उन सभी में उनके धर्मानुसार वो जिस किसी भी नाम से जिस ईश्वर को भी पूजते हों उसके प्रति उनमें श्रद्धाभक्ति जागृत करना तथा सभी सम्प्रदायों में आपसी भाईचारा कायम करना ही मेरा प्रयास है। जिसके लिए मुझे आप सभी सम्प्रदायों के भाई-बंधुओं के सहयोग की आवश्यकता है।

           अब वापिस पिछले मुख्य मुद्दे पर आते हैं तथा उस गलतफहमी वाले शब्द "काफ़िर" का सही मायने में यथार्थरूप से मतलब क्या होता है वो जानलेते हैं :-

  👁️ काफ़िर किसे कहते हैं-  "काफ़िर" वह होता है जिसकी ईश्वर में श्रद्धा न हो, जिसमें मानवता अथवा इंसानियत न हो जिसे धर्मग्रंथों में दानव, दैत्य तथा राक्षस, शैतान कहा गया है, उसे काफ़िर कहते हैं; यही  यथार्थ है।  ऐसे काफ़िरों को यथासंभव प्रयास से समझा-बुझाकर सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए। उसके बावजूद भी यदि वो अपनी प्रवृत्ति से बाज न आये, तो उन काफ़िरों को मार डालना ही उचित होता है।

        इन काफ़िरों का दण्ड क्या होना चाहिए -  इन काफिरों का मृत्यु के बाद जो भी दण्ड हो वो अलग बात है, मगर यदि ईश्वर मुझे इन काफ़िर के लिए दण्ड निर्धारित करने के लिए कहे, तो ऐसा दण्ड निर्धारित किया जायेगा कि इन काफ़िरों का दण्ड देखकर जल्लाद और कसाई के दिल भी ख़ौफ़ से दहलकर बाहर गिर पड़े ।

       इन काफ़िरों को किसी समुद्र के पुल पर 6 फीट नीचे उल्टा लटकाकर किसी नुकीले लोहे के कुश से उनकी आँखें नोच लेनी चाहिए, चार-साढ़े चार इंच मोटी लोहे की रॉड जिसे उसी वक्त लुहार की आग की भट्टी में एकदम से लाल करके उस काफ़िर की टांगों के बीच में जहाँ भी छेद हो घुसा देनी चाहिए।

        क्षमा चाहता हूँ ये अत्यंत ही भयानक मंजर होगा आप लोग इस पर इतना गौर न कीजियेगा।

        मेरे कहने का विशेष तात्पर्य यही है कि किसी के भी प्रति गलतफहमी मत पालिए। पौराणिक तथा सही धर्मशास्त्रों का सहीरूप से अध्ययन कीजिए। आजकल के काटछांट वाले ऐसे बनावटी ग्रंथों का नहीं जो आजकल के संस्कृत की जानकारी रखने वाले कट्टरपंथियों द्वारा तैयार किये हैं, जो गए एक-दूसरे सम्प्रदाय के लोगों के प्रति मस्तिष्क में विष घोलने वाली अर्थात जहर उगलने वाली विकृत मानसिकता को जन्म देते हों।     

      आप केवल इतना संकल्प कीजिए, इतना प्रयत्न कीजिए कि अपने अंदर का भय निकल जाए। छोड़ो ये नेताओं की गुलामी और ईश्वर की भक्ति में मन लगाओ। ये मेरा वचन है कि ईश्वर भक्ति से आपके अंदर का सारा भय निकल जायेगा।

          अपने अन्दर के भय को निकालने की प्रक्रिया भी एक प्रकार का योग है, जो बड़े से बड़े लाभदायक योग से भी कई गुना अधिक लाभकारी सिद्ध होता है।

           अतः ये योग आज से ही नहीं अपितु अभी इसी पल से आरम्भ कर दें।

*****

बोलिये सच्चिदानंदघन भगवान वासुदेव श्रीकृष्णचन्द्र की जय।

हरि ॐ तत्-सत् ।

*****

कोई टिप्पणी नहीं: